नया मेहमान-1

आप सभी को पहले भी बता चुका हूँ कि मैं भवन निर्माण कार्य का ठेकेदार हूँ, गाँव का रहने वाला हूँ, पढ़ाई पूरी करने के बाद मध्यप्रदेश के एक शहर में किराये के मकान में अपनी बीवी के साथ रहता हूँ, यहीं अपने काम में मस्त रहता हूँ।

बात उस समय की है जब मेरी बीवी, जिसे प्यार से मैं जानू बुलाता हूँ, की डिलीवरी होना थी, बारिश का समय था, रात में अचानक उसे दर्द उठने लगा, वैसे तो पिछले चार दिनों से दर्द हो रहा था पर आज कुछ ज्यादा ही तकलीफ हो रही थी, योनि से पानी का रिसाव भी हो रहा था।

मैं भागकर रिक्शा लेकर आया फिर अपनी जानू को लेकर पास के प्राइवेट महिला नर्सिंग होम लेकर गया। डॉक्टर ने चेकअप करके बताया सब ठीक है प्रसव का समय हो गया है, एक आध घंटे में नया मेहमान आ जायेगा।

मैं तो ख़ुशी से पागल हुआ जा रहा था। डॉक्टर द्वारा लिखे पर्चे का सारा सामान दवाइयाँ लाकर अस्पताल में दे दिया, फिर अपने साले को फोन से सारी सूचना दे दी।

चूँकि साला अपनी पत्नी यानि मेरी सलहज और 5 साल के बेटे के साथ वहाँ से 15 किलोमीटर रहता है। उसे अभी आने को मना कर सुबह आने को कह दिया, सोचा रात जागरण मेरा तो होगा ही, उन्हें क्यों इतनी रात गए परेशान करें।

रात 12.30 पर डॉक्टर ने बधाई दी, कहा- पुत्र रत्न हुआ है।

थोड़ी देर बाद मुझे मेरी पत्नी से मिलने दिया, बहुत ख़ुशी हो रही थी, सारी रात आँखों ही आँखों में निकल गई, सोचा, चलो सुबह साला आ जायेगा तो घर जाकर थोड़ी देर सो लूँगा, शायद अपनी पत्नी रेखा को भी साथ लेकर आएगा।

बार बार सलहज का चेहरा नजर आ रहा था, गजब की कशिश थी उसमें, भगवान ने बड़े ही फुर्सत के समय में गढ़ा था उसको !

रंग ज्यादा गोरा नहीं है, गेहुँआ सा है, खास बात तो उसके शारीरिक गठन में है चेहरा गोल, उस पर बड़ी बड़ी कजरारी आँखें, बेदाग गाल, जब हँसती तो गाल में गड्डे पढ़ जाते, रसीले होंट, नाक में गोल नथ सानिया मिर्जा की तरह, ऊपरी होंट पर काला तिल कितना कातिल है यह उसे भी नहीं पता होगा।

उस पर काली घनेरी जुल्फें जब चोटी बनाकर चलती तो मटकते नितम्बों पर बारी बारी से ऐसे टकराती जैसे नागिन डस रही हो उसे, और घायल देखने वाले हो जाते हैं।

कद 5’3’, बदन का आकार 34-30-36 होगा, एक बच्चा होने के बाद भी उसके स्तन गगनचुम्बी प्रतीत होते थे, भरे और फ़ूले हुए कठोर मौसंबी के तरह।

लगता है हमारा साला इनका इस्तेमाल ही न करता हो। पेट सपाट, कूल्हे चौड़े मांसल, गठे हुए नितंब जो चलते समय ऐसे मटकते की देखने वाला अपनी सुध ही खो दे।

नितम्ब देखकर जांघो का अनुमान भी अपनी कल्पना में लगा चुका था। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

उसे देख कई बार अपने आप को नियंत्रित करना मुश्किल होता था।

एक बार ससुराल की होली पर रेखा भाभी ने मुझ पर बाल्टी भर रंग डाल दिया, फिर दौड़ कर रसोई में भाग गई पीछे से मैं रंग लेकर दौड़ा और वहीं उसे पकड़ कर सूखा रंग उसके सर पर डाल दिया।

जो बचा था उसके चेहरे पर डालने के चक्कर में गले पर गिर गया और ब्लाउज़ के अन्दर भी भर गया।

उस दिन पहली बार उसे छुआ था, मेरा सारा शरीर झनझना गया था फिर एक जग पानी उसके ऊपर डाल दिया, अब वो रंग में नहा गई थी, क़यामत से कम नहीं लग रही थी। रंग से गीली चोली देख मेरे तो होश ही उड़ गए थे, कहने लगी- जीजाजी, आपने मेरे सारे के सारे कपडे ख़राब कर दिए, अब आप से नए कपड़े लूंगी।

मैंने कहा- चलो, अभी दिला देता हूँ।

फिर वो हंस कर बाथरूम में घुस गई। मैं बैठकखाने में अन्य रिश्तेदारों के साथ आकर बैठ गया।

अपने दायरे में रहकर सब मस्ती कर रहे थे। उस दिन बड़ा आनन्द आया, नहाने के बाद भी सलहज रंग पूरा छुटा नहीं था, उसका रूप बड़ा ही दिलकश लग रहा था, सोच रहा था कि इसको चोली दिलाने का मौका कब मिलेगा, फिर बात आई गई हो गई।

कभी कभी उसके मजाक को देख उस पर शक होता था कि मेरी प्यारी सलहज के दिल में भी मेरे लिए कुछ है, फिर लगता कि शायद मेरा वहम हो।

लेकिन अपने मन में किसी के प्रति कुछ सोचना मेरी नजर में गुनाह नहीं है, चेष्टा करने की जरूरत मैंने नहीं समझी क्योंकि हमारा रिश्ता मजाक तक तो जायज था। फिर अपनी इज्जत अपने हाथ रहे, यही सोच कभी भी गलत बात या विचार उसे महसूस नहीं होने दिए।

सलहज के ख्यालों में खोये हुए कब सुबह हो गई, पता ही नहीं चला, सोचा, बाहर जाकर टहल लूँ।

कुछ ही देर में हमारे साले साहब आ गए, साथ में थी उनकी सजी संवरी धर्मपत्नी यानि मेरी प्यारी सलहज !

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आते ही साले साहब बधाइयाँ देकर अपनी बहन और भांजे को देखने अस्पताल के अन्दर चले गए।

सलहज रेखा ने हाथ बढ़ा कर मुझे बधाई दी, यह मेरे लिए अप्रत्याशित था, इसकी मुझे उम्मीद नहीं थी कि जिस हसीन सलहज के सपने से अभी जागा था, वह अपना हाथ मेरे हाथ में कुछ इस तरह दे देगी, उसका हाथ पकड़कर मैं खो सा गया, मुझे कुछ याद ही नहीं रहा कि हम सड़क पर खड़े हुए हैं।

तभी मेरे कानों में खनकती आवाज पड़ी- जीजाजी, क्या हुआ? मेरा हाथ नहीं छोड़ेंगे क्या?

तब मैंने हाथ छोड़ते हुए भाभी सॉरी कहा, फिर मैंने बताया- रात भर जगता रहा हूँ इसलिए नींद सी आ रही है। हजारों कहानियाँ हैं अन्तर्वासना पर !

अपनी सलहज रेखा को मैं भाभी संबोधन करके बात करता था। रेखा भाभी पढ़ी लिखी थी इसलिए उन्होंने हाथ मिलाकर बधाई दी होगी यह सोच कर अपने दिलोदिमाग को किसी गलत फहमी का शिकार होने से रोक भाभी को अन्दर अस्पताल में ले गया।

साले साहब भांजे को बाँहों का झूला झुला रहे थे, भाभी भी उनके साथ मग्न हो गई, मुझे अपने आप में कुछ ग्लानि सी हो रही थी कि मैं यह क्या कर बैठा, सहृदयता का बदला हवस से?

शांत बैठा यही सोच रहा था कि साले साहब बोले- आप चाय नाश्ता कर लो, फिर मेरी बाइक लेकर घर चले जाओ, आराम कर लेना, हम लोग यहाँ रुके हैं, चिंता मत करना।

मैंने कहा- ठीक है !

मैं नाश्ता करके घर चला गया, जाकर नहाया, फिर सोने के लिए पलंग पर लेट गया और प्यारी सलहज के बारे में न चाहते हुए फिर सोचने लगा। कब नींद लगी, पता नहीं चला !

मैं नाश्ता करके घर चला गया, जाकर नहाया फिर सोने के लिए पलंग पर लेट गया और प्यारी सलहज के बारे में न चाहते हुए फिर सोचने लगा कब नींद लगी पता नहीं चला।

एक बजे नींद खुली तो तैयार होकर अस्पताल गया।

साले जी बोले- मैं बेटे को स्कूल से लेकर घर चला जाऊँगा, रेखा को दीदी की देख रेख के लिए छोड़े जा रहा हूँ, रात में आप घर चले जाना, रेखा यहाँ रुक जाएगी।

मैंने कहा- ठीक है।

फिर साले साहब से कहा- मुझे घर तक छोड़ दो, अपनी बाइक ले आऊँगा, जरुरत पड़ सकती है।

फिर उनके साथ जाकर बाइक उठा लाया। कुछ देर बाद मेरी जानू ने रेखा भाभी को बुलाकर कान में कुछ कहा।

रेखा ने मेरे को बताया कि दीदी का कुछ जरुरी सामान घर से, कुछ बाजार से लाना है। आप मुझे अपने साथ लेकर चलो।

मैंने कहा- चलो !

भाभी थैला लेकर चलने लगी तो मैंने रूककर अपनी पत्नी से पूछा जानू- क्या लाना है?

बोली- घर से कुछ कपड़े बच्चे के लिए मैंने तैयार कर रखे हैं, मेरी मैक्सी लानी है, बाजार से स्टेफ्री और ओवर साइज़ पेंटी लानी है, वो मैंने भाभी को समझा दिया है। आप तो साथ में चले जाओ बस !

मैंने कहा- ठीक है।

फिर मैं जल्दी से बाहर आ गया, बाइक स्टार्ट की तो भाभी पीछे बैठ गई गाड़ी चलने पर भाभी का शरीर दचके के कारण मुझसे रगड़ जाता, मेरा मन फिर विचलित होने लगा।

बात करने को मैंने पूछा- क्या सामान लेना है?

भाभी बोली- दीदी की मैक्सी, बच्चे के कपड़े घर से लेने हैं।

मैंने पूछा- बाजार से क्या लेना है?

तो भाभी बोली- वो कुछ पर्सनल है।

तब तक घर पहुँच गए घर किराये का था, ऊपर दूसरे खंड पर दो कमरा रसोई लेट्बाथ सब अलग है, बाकी खुली छत ! मकान मालिक नीचे रहते हैं।

ताला खोल भाभी को अन्दर ले जाकर बिठाया, इच्छा तो हो रही थी कि पलंग पर पटक कर सारे अरमान निकाल लूँ, वैसे भी पिछले एक माह से सेक्स नहीं किया था सो मन बहुत बहक रहा था। अन्दर का जानवर बेकाबू हो रहा था।

मैंने चाय बनाने क लिए रसोई में जाकर बर्तन उठा रहा था, तो रेखा ने आकर बर्तन मुझसे ले लिए बोली- आप बैठो, मैं बनाकर लाती हूँ।

अब मैंने सोचा कि आखिरी एक प्रयास एक बार और जरूर करूँगा पूरी योजना बनाकर, मेरे पास तीन दिन का समय है। डॉक्टर ने ‘तीन दिन बाद छुट्टी करेंगे’ बोला है। अब हर कदम फूँक फूँक कर रखना है कि काम न बने तो अपनी इज्जत भी ख़राब न हो, सबसे पहले आपस में खुलना जरूरी है।

मैंने पूछा- भाभी बाजार से क्या लेना है?

बोली- आपको कैसे बताऊँ, कुछ प्राइवेट है।

मैंने कहा- तुम्हारी दीदी तो मुझसे कुछ नहीं छुपाती, बताओ न?बोली- मुझे शर्म आती है !

मैंने कहा- मैं तुमसे एक एक करके पूछूँगा, तुम हाँ या ना में जबाब देना, ओके?

तो वो हंस दी। तब तक चाय तैयार हो गई, चाय लेकर हम लोग कमरे में बैठ गए।

मैंने कहा- बाजार से लाने वाला सामान की बात करते हैं तो इसमें ठोस द्रव वस्त्र इनमें से क्या है?

वो बोली- वस्त्र !मैंने कहा- मैक्सी, साड़ी ब्लाउज?

बोली- इनमें से कोई नहीं !

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मैंने सर खुजलाते हुए कहा- पेटीकोट?

बोली- नहीं !

‘फिर एक ही चीज बची है !’

तो भाभी को हंसी आ गई।

मैंने कहा- ब्रा पेंटी?

तो शरमाकर हंसने लगी।

मैंने कहा- हाँ या ना तो कहो?

तो बोली- हाँ !

और चाय के खाली कप उठाकर रसोई में चली गई। मेरा पहला कदम कामयाब होता लग रहा था, मैं पीछे पीछे रसोई में पहुँच गया। मैंने पूछा- भाभी, नंबर क्या लोगी?

बोली- धत्त, मेरे से बात मत करो।मगर उनकी मुस्कराहट से लग रहा था कि उन्हें गुस्सा नहीं आ रहा, मतलब मजा ले रही है वो।

मुझे मालूम था कि मेरी पत्नी का आकार 32 है पर डिलीवरी बाद स्तन दूध से भर जाते हैं तो ओवर साइज़ ब्रा लगती है, मेरी पत्नी ने मुझसे 34 साइज़ लेने को कहा था पर यह बात रेखा भाभी को नहीं मालूम था कि मुझे सब मालूम है।

जानबूझ कर मैंने कहा- 32 नंबर आता है उसे !

अब तो उन्हें बोलना ही पड़ेगा नहीं तो दुकान में तमाशा हो जायेगा।

बोली- 32 नहीं 34 आयेगा।

मैंने कहा- क्यों मेरी पत्नी है, उसका साइज़ मुझे मालूम है या आपको?

बोली- आप नहीं समझोगे।

मैंने कहा- 34 साइज़ तुम्हारा हो सकता है, लगता है तुम्हें अपना नंबर याद आ रहा है।

अब तो भाभी का चेहरा शर्म और हंसी से लाल हो गया था, बोली- वो बात नहीं है।

मैंने कहा- तो साफ साफ कहो, मेरी पत्नी का मामला है और मुझे मालूम न हो।

तब भाभी बोली- क्या है कि डिलीवरी के बाद इनमें दूध भर जाता है, जिससे इनका साइज़ बढ़ जाता है, फिर बच्चा दूध पिएगा तो थोड़ा ढीला साइज़ ही पहना जाता है ऐसे समय में।

‘ओहो… मतलब पहले आपका भी साइज़ 32 होगा बाद में 34 हो गया?’

रेखा शरमा गई।

मैंने कहा- भाभी, क्या सच में मेरी पत्नी के तुम्हारे जैसे सुन्दर बड़े और कसे हो जायेंगे?

रेखा बोली- जीजाजी, आप सब जानते होंगे फिर मुझे क्यों पूछ रहे हो?

‘… मुझे कहाँ मालूम ये सब? तुम तो वाकई जीनियस हो, तजुर्बेकार हो, तुम से तो बहुत कुछ सीखना पड़ेगा।’

तारीफ औरतों की कमजोरी होती है, उनका चेहरा इस समय ऐसा लग रहा था जैसे वो अपने आप को अकबर के राज्य का बीरबल समझ रही हो।

मैंने भी अब तक कई आंटी, लड़कियों के साथ सेक्स, समागम किया तो उनकी कमजोरी मैं नहीं तो और कौन समझेगा। जो भी किया सब इनकी रजामंदी से ही किया, कभी किसी के साथ जबरदस्ती नहीं की।

मैंने अगला और अंतिम प्रश्न दागा- भाभी, एक बात पूछनी है, कहो तो पूछूँ? बोली- पूछो !

मैंने कहा- डिलीवरी के बाद कितने दिन पत्नी से दूर रहना पड़ेगा?

रेखा बोली- अपने डॉक्टर से पूछना।

मैंने कहा- प्लीज़ तुम हमारी इतनी मदद कर रही हो बताओ न प्लीज़?

रेखा बोली- दो माह तक दूर रहना पड़ेगा !

मैंने कहा- एक माह पहले निकल गया दो माह और निकलना है मतलब तीन माह ऐसे ही कटेंगे?

तो वो बोली- जी हाँ जीजाजी, अब आप बाप बन गए हो, काम धंधे पर ध्यान दो और संयम से रहो।

मैंने कहा- भाभी, मेरे साल साहब ने भी क्या दो माह इंतजार किया था?

इस बार कुछ ज्यादा शर्मा गई वो !

मैंने कहा- बताओ न?

बोली- उन्होंने तो बीसवें दिन ही संयम खो दिया था !

‘मेरा साला बहुत लकी है !’ मैंने कहा तो वो शरमा कर अन्दर भाग गई।

मेरा पहला प्रयास कामयाबी के अंतिम पड़ाव पर था, मुझे लग रहा था कि मेरी बातों से रेखा के दिल में उथल पुथल जरुर मच गई होगी, यदि यह सच होगा तो उत्तेजना से उसकी योनि से थोड़ा बहुत रिसाव भी हुआ होगा, जिसका परीक्षण का समय भी आने वाला था ।

वो ऐसे कि मेरी बातों का जरा भी असर पोजिटिव होगा तो कुछ मिनट बाद भाभी बाथरूम जाएँगी जहाँ पर यह फैसला होगा कि बात आगे बढ़ाना है या यही समाप्त करनी है।

भाभी ने घर का सामान जो ले जाना था, थैले में रख लिया था, फिर बोली- मैं बाथरूम होकर आती हूँ, फिर चलते हैं बाजार का सामान लेने !

और मुस्कुराते हुए बाथरूम में चली गई।

बाथरूम के अन्दर का बल्ब पहले ही मैंने जला दिया था, अन्दर की सिटकनी बंद होने की आवाज मिलते ही दबे पांव दरवाजे के पास पहुँच झिरी में आँख लगाकर मैं अन्दर का नजारा देखने लगा।

रेखा भाभी की पीठ मेरे मतलब दरवाजे तरफ थी और वो अपने स्तनों को ब्लाउज़ के ऊपर से सहलाने लगी, जैसे उन पर गुमान हो।

यह दृश्य उनके सामने लगे आईने से हमें दिख रहा था।

फिर भाभी ने साड़ी ऊपर कमर तक उठाकर पैन्टी को नीचे घुटनों तक खिसका दिया, लाल रंग की पेंटी खिसकते ही वो नितम्ब, जिनके मटकने से दुनिया घायल हो जाती है, अनावृत पहाड़ की तरह मेरी आँखों के सामने थे, जिनकी गहरी खाइयों में न जाने कितने दिल गुम हो गए होंगे।

फिर उन्ही कंदराओं में से एक झरना बड़ी तेजी से बह निकला जिसकी आवाज ऐसे लगी जैसे एक साथ कई झींगुर आवाज कर रहे हों।

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फिर झरना बंद होते ही भाभी कुछ देर उठी नहीं, ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने गुप्ताँग योनि को चेक कर रही हों। फिर एक मग्गा पानी लेकर अपनी योनि को धो कर साफ किया, उसके बाद खड़े होकर पैंटी उतार कर बल्ब की रोशनी में देखने लगी, उस पर चिपचिपा रस लगा हुआ था।

रेखा ने पेंटी के उतने ही हिस्से को पानी से धोया, फिर पेंटी पहनने लगी। उनकी जांघों का जैसा मैंने अनुमान लगाया था उससे भी ज्यादा पुष्ट और सुडौल थी, उस पर खास यह कि जांघें चेहरे से कई गुना गोरी थी।

पेंटी पहन वो हाथ धोने लगी, मैं भागकर कमरे में आ गया मेरा पहला कदम कामयाब हो गया था। अगले कदम की योजना बनाने लगा था मैं।

बाथरूम से निकलकर रेखा खिले गुलाब की तरह सुन्दर लग रही थी।

हमने घर को ताला लगाया, रेखा को लेकर मैं मार्केट पहुँच गया।

एक स्टोर पर रेखा ने मेरी पत्नी की लिए स्टेफ्री ली और कॉटन की ब्रा-पेंटी पसंद कर ली।

मैं भी साथ में था, मैंने दुकानदार से कुछ नई डिजाइन की फेशनेबल ब्रा-पेंटी दिखाने को कहा, उनमें से एक रेखा को पसंद कराकर ले ली, पेमेंट करने लगा तो रेखा बोली- पहले यह तो बताओ कि ये किसके लिए हैं?

तो मैंने इशारे से उसे शांत रहने के लिए कहा।

रास्ते में उसे बताया कि ये तुम्हारे लिए है तो बोली- जीजाजी, मैं इन्हें नहीं ले सकती।

मैंने कहा- पिछली होली पर तुमने कहा था मैंने तुम्हारे सारे कपड़े ख़राब कर दिए, मुझसे नए लोगी, तो आधे आज दिला दिए, साड़ी ब्लाउज कल दिल दूंगा, हो जायेंगे आपके सारे कपड़े जितने मैंने गंदे किये थे होली पर।

वो कुछ नहीं बोली, तब तक हास्पिटल आ गया। रेखा अन्दर चली गई, मेरे पास ब्रा पेंटी का पेकेट था जिसे मैंने बाइक की डिक्की में डाल दिया, सोचने लगा यदि रेखा ये ब्रा पेंटी लेना चाहेगी तो इसकी चर्चा किसी से नहीं करेगी।

करेगी भी किससे, मेरी पत्नी से, यदि कर दी तो मैं अपनी बीवी से इतना ही कहूँगा कि जानू, तुम्हारे माँ बनने की ख़ुशी में तुम्हारे लिए लाये हैं। वो भाभी ने पूछा तो मजाक में कह दिया था कि तुम्हारे लिए है, ले लो। ये तो मैं जानते हूँ जानू की भाभी ऐसी गिफ्ट हमसे क्यों लेंगी।

इसी उधेड़बुन में बहार बाइक पर बैठा था तो रेखा भाभी अचानक आ गई, बोली- दीदी बुला रही हैं।

मैंने पूछा- क्यों?

बोली- उन्ही से पूछ लेना !

मेरे को पसीना आने लगा, ऐसा लग रहा था कि आवाज भी बैठ रही है। अन्दर गया तो मेरी बीवी बोली- बाहर क्या कर हो? हमारे पास बैठो न !

मैं उसके पास बैठ गया।

फिर बोली- तुम खुश तो हो जान?

मैंने कहा- जानू, खुश तो मैं इतना हूँ कि ख़ुशी में मैं क्या कर जाऊँगा मुझे खुद नहीं पता।

रेखा भाभी और मेरी जानू को हंसी आ गई, मेरी जान में जान आ गई।

फिर ऐसे ही हंसी मजाक चलता रहा, शाम का खाना भी साले साहब सुबह ही रख गए थे तो सबने खाना खाया। फिर रेखा को वहाँ जच्चा-बच्चे का ख्याल रखना कहकर घर जाने के लिए बाहर निकल आया।

बाइक स्टार्ट कर ही रहा था कि रेखा भागती हुई आई, बोली- जीजाजी, सुबह घर से दूध उबालकर लाना है, साथ में कुछ चाय नाश्ता लेकर जल्दी आ जाना।

मैंने कहा- जैसी आपकी आज्ञा हो, वैसा कर दूंगा।

रेखा बोली- मेरी नहीं दीदी की आज्ञा है यह।

मैंने कहा- भाभी यह अपना पैकेट तो रख लो अपने पास !

तो वो बोली- आप अपने साथ ले जाओ, यहाँ मेरे किस काम के!

फिर मैं घर चला आया, मेरा दूसरा कदम भी कामयाब रहा।

घर जाकर बेड पर लेट गया पर नींद नहीं आ रही बार बार रेखा का नग्न शरीर जो बाथरूम में देखा था, नजर के सामने आ जाता, अंत में बाथरूम में जाकर रेखा भाभी की याद कर हस्तमैथुन किया तब राहत हुई।

अचानक साले साहब का फोन आ गया, पूछा- कोई परेशानी तो नहीं हो रही? कहो तो मैं आ जाऊँ?

मैंने कहा- सब ठीक है, रेखा भाभी अच्छे से तुम्हारी दीदी की देखभाल कर रही हैं, खुद अस्पताल में रुक गई और मुझे घर भेज दिया आराम करने के लिए !

‘ठीक है, जरुरत हो तो फोन कर देना।’

फिर फोन कट गया।

अगले दिन के लिए तीसरे और अंतिम कदम पर विचार करने लगा, मेरे दिमाग में रेखा के कहे ये शब्द ज्यादा खटक रहे थे ‘पैकेट अपने साथ ले जाओ, यहाँ मेरे किस काम के !’

सोचते सोचते कब नींद आ गई, पता नहीं चला।

कहानी जारी रहेगी।

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