लेखिका : नेहा वर्मा
संजय को हमारे घर पर आए हुए २ दिन हो चुके थे. संजय ३५ साल का था और इंदौर में नौकरी करता था. वो एक तरह से मेरे पापा का दोस्त था. वो दिखने में सुंदर और गोरे रंग का है. जब वो हमारे घर आया तो उसको देख कर मेरा मन मचल उठा. उसने भी जब मुझे देखा तो वो भी मेरी तरफ़ आकर्षित हो गया था. मैं दिखने में सुंदर हूँ. मेरे स्तन पूरा उभार ले चुके हैं. मेरा बदन गोरा और चिकना है. मेरे शरीर का कटाव, उभार और गहराइयाँ किसी को भी अपनी और खींच सकती हैं. खासकर मेरी चूतडों की गोलाईयां, और उसकी फांकें गोल और उभरी हुयी हैं. मेरी जींस उन गहराइयों में घुस जाती है. जो देखने में बहुत उत्तेजक लगती है।
संजय भी मेरी जवानी के जलवों से बच नहीं पाया. वो मुझसे बार बार बातें करने के बहाने या तो ख़ुद कमरे में आ जाता, या मुझे बुला लेता. मेरी इन सेक्सी हरकतों से उसका मन डोल गया. संजय ने वो हरकत कर दी जिसका मैं इंतज़ार कर रही थी.
मम्मी पापा के ऑफिस चले जाने के बाद मैं अपने कपड़े बदल कर सिर्फ़ कुरता पहन लेती थी. अन्दर पेंटी भी नहीं पहनती थी. कुरता लंबा था इसलिए पजामा भी नहीं पहनती थी. इसके कारण मेरे चूतडों की लचक, बूब्स का हिलना और बदन की लचक नजर आती थी. मैं चाहती थी कि वो किसी तरह से मेरी और आकर्षित हो जाए और मैं उसके साथ अपने तन की प्यास बुझा लूँ. रोज की तरह संजय ने मुझे अपने कमरे में बुलाया. उसने मुझे बैठाया और मुझसे बात करने लगा.
ऐसा लगा कि वो सिर्फ़ यूँ ही बात कर रहा था वो सिर्फ़ मेरा साथ चाह रहा था. मैंने उसे फंसाने के लिए हथकंडे अपनाने चालू कर दिए. मैं कभी हाथ ऊपर करके अंगडाई लेती, कभी अपने बूब को खुजाने लगती. मेरे बूब्स कुरते में से थोड़े बाहर झांक रहे थे, उसकी निगाहें मेरे स्तनों पर ही गडी हुयी थी. मैं उठकर बिस्तर पर बैठ गयी. इस बीच में हम बातें भी करते जा रहे थे. मैंने एक किताब ले ली और उलटी हो कर लेट गयी …और उसे खोल कर देखने लगी. अब मेरे नंगे स्तन मेरे कुरते में से साफ़ झूलते हुए दिखने लगे थे. मैंने तिरछी नजरों से देखा उसका लंड अब खड़ा होने लगा था. मेरा कुरता मेरी जांघों तक चढ़ गया था. उसका पजामा का उठान और ऊपर आ गया. मैं मन ही मन मुस्कुरा उठी.
जैसा मैं चाह रही थी वैसा ही हुआ. संजय अपने होश खो बैठा. वो उठा और मेरे पास बिस्तर पर बैठ गया. मैं जान गयी थी की उसके इरादे अब नेक हो गए है. मैंने अपनी टांगे और फैला ली …और किताब के पन्ने पलटने लगी. संजय ने मेरे पूरे बदन को देखा और फिर अचानक ही …… वो बिस्तर पर आ गया और मेरी पीठ पर सवार हो गया. मैं कुछ कर पाती, उसके पहले उसने मुझे जकड लिया. उसके लंड का जोर मुझे चूतडों पर महसूस होने लगा था. मैं जानकर के हलके से चीखी ..”संजू ….. ये क्या कर रहो हो …”
“नेहा …मुझसे अब नहीं रहा जाता है ….”
” देखो मैं पापा से कह दूंगी …..”
अब उसने मेरे स्तनों पर कब्जा कर लिया था. मुझे बहुत ही मजा आने लगा था. मुझे लगा ज्यादा कहूँगी तो कहीं ये मुझे छोड़ नहीं दे. इतने में उसके होंट मेरे गालों पर चिपक गए. उसने मेरा कुरता ऊपर कर दिया और अपना पजामा नीचे खींच दिया. अब मैं और संजय नीचे से नंगे हो गए थे. उसने एक बार फिर अपने लंड को मेरे चूतडों पर दबाया. मैंने भी चूतडों को ढीला छोड़ दिया …और उसका लंड मेरी गांड के छेद से टकरा गया.
” अब बस करो ….छोड़ दो न ….. ये मत करो …. संजू …..हटो न …”
पर उसका लंड मेरी गांड के छेद पर आ चुका था. उसने जैसे ही लंड का जोर लगाया ……कि … घर की कॉल बेल बज उठी.
संजय घबरा गया. वो उछल कर खड़ा हो गया. और अपना पजामा ठीक करने लगा. मैं एक दम निराश हो गयी. मैं चुदने ही वाली थी की जाने कौन आ गया.
मैं बिस्तर से उठी और संजय को बनावटी गुस्से से देखा और बहार आ गयी. टिफिन वाला खाना लेकर आया था. मन ही मन में टिफिन वाले को खूब गलियाँ दी. मैंने टिफिन किचेन में ला कर रख दिया.
मैं अब अपने कमरे में आ गयी. सोचा कि मौका हाथ से निकल गया. मैं अपने बिस्तर पर जा कर धम्म से उलटी पड़ गयी. मेरा कुरता पंखे कि हवा से उड़कर चूतड पर से ऊपर आ गया. उसी समय मुझे लगा कि मुझे संजय ने फिर से जकड लिया है. इस बार वो पजामा उतार के आया था.
” अरे ….. हट जा न …… हटो संजय …”
“मना मत करो …नेहा …”
“देखो मैं चिल्ला पडूँगी ..”
‘नहीं नहीं …ऐसा मत करना ……. तुम बदनाम हो जोगी ..मेरा क्या है …..”
मेरा मन कह रहा था कि इस बार मुझे मत छोड़ना. चोद के ही जाना.
उसका नंगा लंड अब मेरी चूतडों की दरारों में घुस पड़ा. मैंने टांगे थोडी फैला दी. उसका लंड मेरी गांड के छेद से टकरा गया. जरा से जोर लगाने पर उसकी सुपारी अन्दर घुस पड़ी.
“आह संजू … मत करो …न …… देखो तुमने …क्या किया ?”
“नेहा ..कुछ मत बोलो …आज मैं तुम्हे छोड़ने वाला नहीं …. मेरी इच्छा पूरी करूँगा .”
मुझे तो आनंद आ रहा था … छोड़ने की बात कहाँ थी. वो तो मैं यूँ ही ऊपर से बोल रही थी. मेरे मन में तो चुदने की ही थी.
उसका लंड अब मेरी चूतडों की गहराईयों को चीरते हुए अन्दर बैठने लगा. मैं आनंद से भर उठी. उसके धक्के बढ़ने लगे. मैं बोलती रही “हाय रे … मत करो ….लग रही है ….हट जाओ न संजय …”
“आह …आह ह …मेरी रानी …. क्या चिकनी गांड है …… आ अह ह्ह्ह मजा आ रहा है …….”
उसके तेज होते धक्को से मुझे दिल में संतोष मिल रहा था. मन आनंद से भर उठा था. मैं खुश थी कि आज मेरी गांड को लंड मिल गया. और मेरी गांड चुद रही थी.
अचानक उसने मुझे सीधा कर दिया …. और अपना लंड मुझे दिखाया …”देख नेहा …इसका क्या हाल किया है तुमने ……”
उसका मोटा कड़क लंड देख कर मेरी उसे चूसने की इच्छा होने लगी …. पर उसके हिसाब से वो मेरा बलात्कार कर रहा था . और जबरदस्ती मेरी गांड चोद रहा था. उसके चोदने की तेजी में मुझे मजा भी आ रहा था. मैंने कहा ..”देख संजय …मैं हाथ जोड़ती हूँ … मुझे छोड़ दे अब … प्लीज़ ..”
” नेहा …सॉरी …. ये मेरे बस में नहीं है अब …… मैं अब पूरा ही मजा लूँगा ….. तुमने मुझे बहुत तड़पाया है ..”
कहते हुए उसने अपना लंड मेरी चूत में घुसा दिया ….. और मैंने फिर नाटक करना चालू कर दिया ……. पर कब तक करती …मैं तो होश खोने लगी थी ….. मैं निहाल हो उठी थी ….. मेरा मन खुशी के मरे उछल रहा था ….. उसके धक्के बढते ही गए …मेरे चूतड अब अपने आप उछल उछल कर चुदवा रहे थे ……. मेरे मुंह से अपने आप ही निकलने लगा .. ” हाय संजय मुझे छोड़ना मत …चोद दे मुझे …रे चोद दे …… हाय संजय तुम कितने अच्छे हो ….लगा …और जोर से लगा …”
“हाँ अब मजा आया न रानी …… मजे ले ले ….. चुदवा ले जी भर के …. हा …… और ले ….येस …येस …”
“मा आ ..मेरी ….हाय ….. माँ रीई ….. चुद गयी माँ ..मेरी ….हाय चूत फट गयी रे …चोद रे चोद …..मेरी माँ आ ….”
ये ले …और ले …… अरे …अरे …. मैं गया. ….”
कहते हुए संजय मेरे ऊपर लेट गया और लंड का जोर चूत की जड़ में लगाने लगा … लंड के जोर से गड़ते ही मेरी चूत ने धीरे धीरे पानी छोड़ना चालू कर दिया. मैं जोर से झड़ गयी थी. उसने फिर लंड का जोर लिपटे लिपटे ही लगाया …और उसका रस निकल पड़ा.
“हा नेहा …मैं गया …… निकला …हाय …निकला ……. नेहा मुझे जकड लो. मैंने प्यार से उसे लिपटा लिया. मेरी इच्छा पूरी हो गयी थी. वो करवट ले कर साइड में लुढ़क गया.
मैं उसे किस पर किस किए जा रही थी. वो गहरी गहरी सांसे ले रहा था. नोर्मल होते ही वो उठ खड़ा हुआ.
उसने मेरी तरफ़ देखा और मुंह छुपा लिया.
“सॉरी नेहा …. मुझे माफ़ कर देना …मुझसे रहा नहीं गया …. मैं जानवर बन गया था … सॉरी …..” वो मुड़ कर कमरे से बाहर चला गया. मैं उसके कमरे में गयी तो वो अपना सामान समेट रहा था. वो जाने की तय्यारी कर रहा था.
मैं उदास हो गयी. मुझे अपनी गलती का अहसास होने लगा था … मुझे नहीं मालूम था कि मेरी नाटकबाजी उसे अपनी ही नजर में गिरा देगी. मैं भाग कर गयी और उसे लिपटा लिया. और उसे चूमने लगी. “संजय ..मत जाओ न …..”
“नहीं मेरा यहाँ रहना ठीक नहीं है …”
“संजय …… आई ऍम सॉरी ….. मेरी वजह से हुआ ना …देखो मत जाओ ……”
उसने मुझे देखा और सर झुका लिया
“अच्छा जाओ …… पर अब मेरे साथ कौन बलात्कार करेगा …”
उसकी उदासी समाप्त हो गयी थी ……. वो हंस पड़ा …….. मैं भी उस से लिपट गयी।
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