नया मेहमान-2

मैं घर चला आया, मेरा दूसरा कदम भी कामयाब रहा। घर जाकर बेड पर लेट गया पर नींद नहीं आ रही बार बार रेखा का नग्न शरीर जो बाथरूम में देखा था, नजर के सामने आ जाता, अंत में बाथरूम में जाकर रेखा भाभी की याद कर हस्तमैथुन किया तब राहत हुई।

अचानक साले साहब का फोन आ गया, पूछा- कोई परेशानी तो नहीं हो रही? कहो तो मैं आ जाऊँ?

मैंने कहा- सब ठीक है, रेखा भाभी अच्छे से तुम्हारी दीदी की देखभाल कर रही हैं, खुद अस्पताल में रुक गई और मुझे घर भेज दिया आराम करने के लिए !

‘ठीक है, जरुरत हो तो फोन कर देना।’

फिर फोन कट गया।

अगले दिन के लिए तीसरे और अंतिम कदम पर विचार करने लगा, मेरे दिमाग में रेखा के कहे ये शब्द ज्यादा खटक रहे थे ‘पैकेट अपने साथ ले जाओ, यहाँ मेरे किस काम के !’

नींद नहीं आ रही थी, बार बार रेखा का नग्न शरीर जो बाथरूम में देखा था, नजर के सामने आ जाता !

अंत में बाथरूम में जाकर रेखा भाभी की याद कर हस्त मैथुन किया, तब राहत हुई।

आगे के लिए तीसरा और अंतिम कदम पर विचार करने लगा, मेरे दिमाग में रेखा के कहे ये शब्द ज्यादा खटक रहे थे- पैकेट अपने साथ ले जाओ, यहाँ मेरे किस काम का !’ सोचते सोचते कब नींद आ गई, पता नहीं चला।

सुबह जल्दी नींद खुल गई बारिश के मौसम के कारण रात से ही हल्की बूंदा बांदी हो रही थी। नहा धोकर दूध लेने चला गया, फिर उसे उबालकर थर्मस में भर लिया।

एक थर्मस चाय के लिए लेकर घर से निकल पड़ा। रास्ते में एक अच्छे से होटल में नाश्ता किया, रेखा भाभी के लिए नाश्ता पैक करवाया, थर्मस में चाय लेकर अपनी जान के लिए ब्रेड का पैकेट लिया और अस्पताल पहुँच गया।

रेखा बच्चे को गोद में लेकर खिला रही थी, मुझे देख मुस्कुरा दी, बोली- यह आपका नया मेहमान बड़ा परेशान कर रहा है, इसे संभालो !

कहकर बच्चे को मेरी गोद में देने लगी, बच्चे को लेते समय मैंने उसका हाथ भी धीरे से दबा दिया, फिर भाभी से चाय नाशता करने का बोल दिया, अपनी दीदी को ब्रेड दूध दे देना ! कहकर मैं नए मेहमान में खो गया, सोच रहा था, मेरा बेटा मेरे को बड़ा लकी साबित हो रहा है शायद जिसके सपने मैंने कई बार देखे वो आज सच हो जाये।

ये लोग नाश्ता करके फ्री हुए ही थे कि डॉक्टर राउंड पर आ गई, साथ में सुन्दर सी नर्स हाथ में फ़ाइल लिए हुए थी, छाती पर एक तरफ नेम प्लेट थी जिस पर ‘अलका रानी’ लिखा था, वो बोली- आप लोग बाहर जाओ, मरीज को मैडम चेक करेंगी !

मैं और रेखा बाहर आ गए, रेखा को काफी करीब से देख रहा था अब मैं ! वो अलसाई सी लग रही थी, आँखों में नशा सा छाया हुआ था।

मैंने पूछा- रात में नींद नहीं आई क्या?

तो बोली- तुम्हारा लाडला सोने कहाँ दे रहा था ! बड़ा बदमाश है, रात में बार बार रोता है।

मैंने कहा- इसकी तरफ से मैं माफी मांगता हूँ, अब ऐसे समय में तुम्हारा ही सहारा है।

तो रेखा हंसकर बोली- जीजाजी, मैं तो मजाक कर रही हूँ, आप जल्दी सिरियस हो जाते हो।

‘हाँ, तुम्हें लेकर कुछ ज्यादा ही सीरियस हो जाता हूँ।’

बोली- क्या मतलब?

कुछ बोल पाता, इसके पहले नर्स आ गई।

‘अब आप मरीज के पास जा सकते हैं।’ नर्स ने आकर कहा- डॉक्टर मैडम ने यह परचा दवाई लाने के लिए दिया है।

मैंने बच्चे को रेखा को दिया, कहा- भाभी, आप अन्दर जाओ, मैं दवाई लेकर आता हूँ।

रेखा अन्दर चली गई।

सुबह के नौ बज गए थे, बाहर बूंदा बांदी अभी भी जारी थी। मैं दवाई लेकर आया तो मेरी जानू ने कहा- जान, आपको अपने काम की साईट पर जाना है क्या?

मैंने कहा- हाँ थोड़ी देर में जाऊंगा।

तो मेरी जानू ने कहा- तुम भाभी को लेकर घर छोड़ देना, तो यह नहा कर खाना बना लेगी, आप लोगों के लिए। मेरे लिए दलिया बनाकर लाना है, अभी दोपहर तक यहाँ कोई जरुरत भी नहीं रहेगी। फिर नर्स तो है ही अस्पताल में !

मैंने कहा- ठीक है !

फिर तभी अल्का रानी आ गई दवाई चैक करने ! तो मैंने 100 का नोट उसे दिया, फिर कहा- सिस्टर, हम लोग घर जा रहे हैं। खाना खाकर दोपहर तक आ जायेंगे, आप हमारे बीवी बच्चे का खयाल रखियेगा।

तो अलका बोली- आप आराम से आइयेगा, मेरी डयूटी 4 बजे तक है, चिंता मत करना।

फिर उसने नोट अपने ब्लाउज में ठूंस लिया और मुस्कुराकर चली गई।

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मैंने कहा- चलिए भाभी, आपको घर छोड़ दूँ, फिर मुझे काम से जाना है।

रेखा ने अपना बैग ले लिया जिसमें उसके कपड़े और जरुरत का सामान रखा था।

मैंने अपनी पत्नी से कहा- जान चलता हूँ। जल्दी ही लौटूंगा, कुछ लाना हो तो?

बोली- नहीं !

मैंने कहा- ठीक है।

फिर बाहर आ गया। पीछे पीछे भाभी भी आ गई।

अब मेरे तीसरे कदम पर अमल करने का समय आ गया था तो मैंने अपने आप को तैयार तो पहले ही कर लिया था कि अब क्या करना है।

लगता था कि उस दिन मौसम भी हमारा साथ दे रहा था, भाभी को बाइक पर पीछे बिठा कर मैं चलने लगा तो मैंने पूछा- खाने में क्या बनोओगी?

रेखा बोली- जो आप कहो।

मैंने कहा- सब्जी तो है नहीं, लेने चलना पड़ेगा, चलो सब्जी बाजार से ले लेते हैं।

बोली- ठीक है, पर बारिश तो तेज होती जा रही है, हम भीग जायेंगे।

मैंने कहा- तुम्हें जाकर तो नहाना ही है पर अपना बैग डिक्की में डाल दो।

उसने बैग डिक्की में रख दिया, मैं दूर की सब्जी की दुकान तक उसे ले गया, सब्जी खरीदने के बाद वहाँ से निकल ही रहे थे कि पानी तेजी से पड़ने लगा।

मैंने कहा- भाभी, मैं तो भीग ही रहा हूँ, आप मेरे पीछे आकर अपने आप को मेरी ओट में कर लो तो ज्यादा नहीं भीगोगीl

मरता क्या न करता ! वो मेरे से चिपककर बैठ गई, अब मुझे पीठ पर उसके स्तनों का अहसास हो रहा था, गर्दन के नीचे उसकी साँस टकरा रही थी, अभी घर जाने का मन नहीं था मेरा, अभी उसके जिस्म में कुछ हलचल मचाने के बाद ही घर जाकर कुछ उम्मीद जा सकती है, यह सोच मैंने कहा- भाभी, तेल मसाला भी ले लेते हैं, अगर घर पर न हुआ तो दोबारा भीगना पड़ेगा।

फिर बाइक को दूसरी ओर मोड़ दिया, अब तक भाभी को शायद ठण्ड लगने लगी होगी। क्योंकि उसकी कंपकंपाहट मुझे साफ महसूस हो रही थी।

एक दुकान के सामने गाड़ी को रोक, भाभी का हाथ पकड़कर खींचता हुआ शेड के नीचे ले आया। उसका सारा ब्लाउज़ गीला हो चुका था अन्दर की ब्रा साफ दिखाई दे रही थी, मेरे को उधर देखते हुए पाया तो उसने पल्लू खींच कर ढकने की असफल कोशिश की, चेहरे पर

पानी की बूंद गुलाब पर ओस की तरह लग रही थी, इच्छा तो हुई कि उन्हें पी लूँ ! यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

फ़िलहाल दुकानदार से सामान पैक कराया, फिर रेखा भाभी को कहा- अब घर पास ही है।

शार्ट कट से घर जाने लगा, बारिश ने भी आग में घी का काम किया, तभी तो भाभी मुझसे चिपकी हुई थी।

घर पहुँच कर गाड़ी रोक दी, पर लगता है भाभी को तो होश ही नहीं था।

‘सो गई हो?’ मैंने कहा- भाभी उतरो, घर आ गया है।

तब ओह कहते हुए उतर कर सीढ़ियों पर पहुँच गई, सामान उसके हाथ में था, मैंने डिक्की से उसका बैग निकाला और ऊपर अपने मकान का ताला खोल अन्दर आ गए।

अन्दर आकर कुछ गरमी सी महसूस हुई मैंने बाथरूम का बल्ब और गीजर ऑन कर दिया, फिर कहा- भाभी, गरम पानी से नहा लेना ठण्ड भी दूर हो जाएगी।

बोली- ठीक है।

फिर तौलिये से अपना बदन पोंछते हुए बाल सुखाने लगी।

मेरी योजना का अगला कदम बड़ा महत्त्वपूर्ण था।

पानी गर्म हो गया था, मैंने गीजर बंद कर दिया, भाभी से कहा- एक एक कप चाय हो जाये?

बोली- ठीक है।

फिर वो रसोई में चली गई। वो गई, वहाँ से वापस आकर बताया- दूध तो है नहीं, चाय के लिए।

मैंने कहा- अरे हाँ ! मैं तो भूल ही गया था, वो तो सारा दूध अस्पताल ले गया था। खैर, तुम नहा लो, जब तक मैं दस मिनट में दूध लेकर आता हूँ !

रेखा ने अपने कपडे बैग से निकाले और बाथरूम में रख दिए, बोली- आप चले जाओ तो मैं दरवाजा अन्दर से लगा लूँगी।

मैं समझ गया कि यह नहाने को उतावली हो रही है, सारे कपड़े जो गीले हैं। मैंने कहा- इस दरवाजे पर लगा लॉक अन्दर बाहर दोनों तरफ से खोला-लगाया जा सकता है। तुम निश्चिन्त होकर नहा लो, यदि मैं दूध लेकर ना आ पाया और दरवाजा खोलने की जरुरत पड़े तो दूसरी चाबी यह मेज पर रखी है।

फिर मैं बाहर निकल गया और अपनी चाबी से दरवाजा लॉक कर दिया। सीढ़ी में जाकर एक सिगरेट जलाकर कश लेने लगा।

मेरी योजना यह थी कि मेरी अनुपस्थिति में रेखा स्वछन्द होकर नहाएगी, फिर मैं लॉक खोलकर धीरे से घर में आऊँगा और बाथरूम के दरवाजे की झिरी से उसे नहाते हुए देख उसके हुस्न का दीदार करूँगा।

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सिगरेट ख़त्म होते ही मैं दबे पांव आया, चाबी लगाकर दरवाजा खोल अन्दर आ गया, जिस कमरे से बाथरूम लगा हुआ था, हौले से उस कमरे में गया पर यहाँ तो सारी योजना चौपट लग रही थी। बाथरूम का दरवाजा खुला था, कहीं रेखा नहाकर निबट तो नहीं गई थी।

पर नहाने जैसे आवाज बराबर आ रही थी, अब क्या करूँ?

अगले पल सोचा जो होगा देखा जायेगा, दबे पांव दरवाजे तक पहुँच गया अन्दर का मंजर देख बेहोशी सी छाने लगी पर होश नहीं खोने दिया, बाथरूम में रेखा दरवाजे की तरफ मुँह करके पटरी पर जन्मजात नंगी बैठी हुई थी, उसका गोरा बदन आँखों के सामने बेपर्दा था।

बाथरूम में रेखा दरवाजे की तरफ मुँह करके पटरी पर जन्मजात नंगी बैठी हुई थी, उसका गोरा बदन आँखों के सामने बेपर्दा था।

बाल जूड़ा बनाकर सर पर बंधे थे, दोनों पैर खुले हुए थे, चूत बिल्कुल साफ दिखाई दे रही थी, उसका मुँह खुला सा था, अन्दर की लालिमा दिखाई दे रही थी, सारे शरीर पर साबुन और झाग लगा हुआ था, बड़े बड़े स्तन स्वचालित से दायें बायें ऊपर नीचे झूल रहे थे।

इस समय चेहरे पर साबुन लगाकर रेखा अपने चेहरे कान और गर्दन को साफ कर रही थी। कड़क स्तन, सपाट पेट पर नाभि, गोरी गुदाज बाहें, पुष्ट जंघाएँ, योनिक्षेत्र पर छोटे छोटे बाल जैसे एक सप्ताह पहले शेव किये हों, पूरी अजंता की मूरत लग रही थी।

फिर उसके हाथ स्तनों पर फिरने लगे जैसे धुलाई कम मालिश ज्यादा कर रही हो।

रेखा ने एक मग्गा पानी भरकर स्तनों पर डाला तो स्तन धुल कर साबुन का पानी नाभि से होता हुआ चूत धोता हुआ नीचे टपकने लगा तो रेखा ने चूत भी रगड़ कर साफ कर ली।

फिर मग्गा भर पानी से चेहरा धोया और आँखें खोल दी।

मुझे सामने देख उसका चेहरा ऐसा बिगड़ा, जैसे उसने भूत देख लिया हो फिर एक घुटी चीख उसके मुख से निकल गई।

रेखा ने डोरी पर टंगा तौलिया खींचा और अपने बेपर्दा जिस्म को ढकने लगी। इसी आपा धापी में तौलिये के साथ रखी उसकी ब्रा-पेंटी नीचे गिरकर पानी में भीग गई।

मैं वहीं जड़वत सा खड़ा था, वहाँ से हट जाऊँ मेरे से यह भी न हुआ।

रेखा तौलिया लपेट कर रसोई में भाग गई साथ में पलंग पर रखे अपने कपड़े ले गई। मैं बदहवास सा पलंग पर बैठ गया, आगे क्या करूँ, सोचने लगा। मैं थोड़ा फ्लैशबैक में जाकर उस पर हुई प्रतिक्रियाओं का आकलन करने लगा।

पहली बात तो यह कि कल यह मेरी बातों से उत्तेजित हुई थी तभी तो चड्डी गीली हो गई थी प्रीकम से।

दूसरी यह कि ब्रा पेंटी इसको दिलाई, यह बात गुप्त रखी, फिर यह कहना कि इस पैकेट को अपने साथ ले जाओ, यहाँ मैं क्या करुँगी।

तीसरी कि बारिश का मजा लेते हुए मेरे बदन से चिपकना।

चौथी बात यह कि जानकारी होते हुये कि मकान की एक चाबी मेरे पास है, मैं कभी भी अन्दर आ सकता हूँ, फिर भी बाथरूम का दरवाजा खोलकर बेपर्दा नहाना।

पाँचवीं बात यह कि फिर मेरे द्वारा उसे बेपर्दा देखने पर तुरंत कोई गुस्सा न जताना। हाँ यह सम्भव है कि कपड़े पहनने के बाद आकर गुस्सा करे और अपने घर वापस जाने की धमकी भी दे डाले। यदि उसने कुछ न कहा तो इन बातों को सोचकर यही लगता है कि बात बनने वाली है।

अब तक पन्द्रह मिनट हो गए थे, कहीं से उसकी कोई आवाज नहीं आ रही थी। मतलब गुस्से में होती तो अब तक रौद्र रूप धारण कर मेरी खबर ले रही होती, इसका मतलब कहीं बैठी शर्म से गड़ी जा रही होगी।

मैं उठा, अपने गीले कपड़े जो अब तक पहने था, उन्हें उतार दिया, बनियान चड्डी पहने रहा, फिर एक लुंगी लगाई और रसोई में पहुँचा।

दरवाजे के पास रेखा बैठी जमीन को नाख़ून से कुरेद रही थी।

मैंने कहा- सॉरी भाभी, मैंने समझा कि आप नहा चुकी होंगी और बाथरूम दरवाजा खोलकर कपड़े वगैरह धो रही होंगी। मुझे क्या पता था कि आप इस तरह बेपर्दा होकर… !

जान बूझ कर बात को अधूरा छोड़ दिया।

तब रेखा बोली- फिर आप जानबूझ कर वहाँ क्यों खड़े रहे, आपको वहाँ से हट जाना चाहिए था।

अब मैंने अपना आखिरी पासा फेका, कहा- भाभी आप नाराज मत होना, मैंने आज से पहले कभी ऐसी भरपूर जवानी जिसका अंग अंग सांचे में ढला हो, ऐसी कंचन काया जिसे बड़े बड़े ऋषि मुनि भी बहक जाये जिसका वर्णन शब्दों में नहीं कर सकता, को देख कर अपनी सुध बुध खो दी थी, मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि मैं क्या करूँ, लग रहा था तुम्हें उठा कर उसी वक्त अपने बदन से लिपटा लूँ और लिटा कर… ! पर अच्छा हुआ, जो मेरा शरीर वहीं जड़वत हो गया था और मैंने कोई गलत हरकत नहीं की, मेरी गलती को तुम माफ़ कर दोगी, आपसे यही उम्मीद लेकर आपके पास आया हूँ।

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माहौल को हल्का बनाते हुए मैंने कहा- अब उठो, खाना बना लो जैसे कुछ हुआ ही न हो।

तो रेखा बोली- आप दूध लेने गए थे, फिर इतना जल्दी कैसे आ गए थे?

‘दूध इसलिए नहीं ला पाया कि पानी बहुत तेज बरस रहा था इसलिए वापस आ गया।’

फिर उसका हाथ पकड़कर उठा दिया और रसोई प्लेटफार्म के पास ले जाकर छोड़ दिया, वो कच्ची सब्जी धोने लगी।

मैं बाथरूम से उसकी वो पेंटी ब्रा उठा लाया जो धोके से गिरकर गीले हो गए थे, मैंने कहा- भाभी, आपके ये कपड़े गीले हो गए, फिर आप अन्दर कुछ नहीं पहनें होंगी, कल जो नए वाले थे उन्हें पहन लो न !

बोली- मैं वो नहीं ले सकती जीजाजी ! आप जिद मत करो और जीजाजी आपसे विनती है, वादा करो जो आपने बाथरूम में देखा उसका जिक्र कभी किसी से नहीं करोगे !

मैं समझ गया कि अब यह फंस गई, मैंने कहा- एक शर्त है, यदि तुम ये नई पेंटी ब्रा पहन लोगी तो मैं अपना वादा पूरी तरह निभाऊँगा।रेखा बोली- इतनी अच्छी ब्रा पेंटी देख कभी दीदी या आपके साले को पता चला तो वो क्या सोचेंगे?

‘उसके लिए मेरे पास प्लान है, तुम्हारी दीदी पूछे तो कहना आपके पति ने दिलाई थी, पति पूछे तो कहना बारिश में गीले हो जाने के कारण दीदी के ले लिए थे, और ये दोनों भाई बहन आपस में कभी एक दूसरे से इस बारे में पूछ नहीं सकते।’

अब रेखा हंसने लगी।

मैंने उसको बेपर्दा देखा और उसको इस बात की जानकारी थी ही, तो इसका फ़ायदा यह हुआ कि अब मेरे मजाक तो छोटी मोटी बात थी, उसके लिए और हमें भरपूर मौका मिल रहा था अपनी बात कहने का !

मैंने कहा- हंसो मत, मेज पर रखे हैं उठाकर बाथरूम जाओ और पहन लो, हाँ, दरवाजा लगा लेना नहीं तो मैं फिर आ जाऊँगा।

इस बार जोर से हंसी थी, वो फिर पैकेट से ब्रा पेंटी निकालकर बाथरूम में घुस गई, अन्दर बल्ब पहले से जल रहा था, दरवाजा अन्दर से लगा लिया। मैं तुरंत दरवाजे की झिरी से देखने लगा, रेखा ने पेंटी तो साड़ी और साया को ऊपर उठा कर फट से पहन ली, फिर पल्लू को गिरा कर भाभी ब्लाउज़ उतारने लगी, ब्लाउज़ उतार कर डोरी पर टांग दिया, फिर स्तनों को जोर से भींचते हुए सहलाया, लगता था अब यह गरमी पर आ गई है, फिर ब्रा पहन कर मम्मों को एक बार फिर दबाया, चारों तरफ़ से दबा कर मुआयना किया, फिर ब्लाउज पहनने लगी।

मैं वहाँ से हट गया।

बाहर आकर रेखा रसोई में जाने लगी तो मैंने कहा- पहन ली? फिटिंग सही आई या नहीं?बोली- सही आई।

मैंने कहा- आपके इतने बड़े बड़े देखने के बाद मुझे लग रहा था आपका नम्बर 36 होगा।

शरमा कर बोली- जीजाजी, ज्यादा मजाक मत करो, 11 बज गए है और काम बहुत है।

‘भाभी, एक आखिरी बात कहना चाहता हूँ, उम्मीद है कि आप मना नहीं करोगी।

बोली- क्या?

मैंने कहा- गुस्सा ना होना, मना मत करना, तभी बताऊँगा।

बोली- गुस्सा नहीं होऊँगी, कहो !

मैंने कहा- एक बार तुम्हें दिलाये सेट को पहने हुए तुम्हें देखना चाहता हूँ !

बोली- यह तो आप बेशर्मी कर रहे हो !

मैंने कहा- क्यों?

तो बोली- किसी पराई स्त्री के लिए तुम ऐसा कैसे कह सकते हो?

मैंने कहा- भाभी, पहले तो आप पराई नहीं मेरी सलहज हो, फिर मैं आपको जिस रूप में देख चुका, उससे तो यह रूप काफी अच्छा होगा। मैं देखना चाहता कि तुम्हारे नायाब, उन्नत ठोस भरे हुए और विशाल स्तनों पर यह ब्रा कितनी सुन्दर लगती है।अब वो चुप हो गई और अपनी तारीफ सुन वासना से परिपूर्ण होती जा रही थी।

मैंने कहा- प्लीज भाभी ! कंधे पर हाथ रखकर कंधे को दबा दिया फिर अपने हाथ से उसका पल्लू खींच दिया।

कहानी जारी रहेगी।

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