Drishyam, ek chudai ki kahani-3
हेल्लो दोस्तों, अब आगे की कहानी पढ़िए! गर्मी का मौसम था, चीलचिलाती धुप थी। अक्सर गुजरात के छोटे कस्बों में दूकानदार दोपहर को १२.३० से चार बजे के बिच में दुकान बंद कर देते हैं और घर जाकर खाना खा कर सो जाते हैं। मैंने अनुभव किया है की अक्सर इन्हीं समय काल में कई विविध रस से परिपूर्ण कहानियां जन्म लेती हैं। शायद इसी समय में कई नवशिशु के अवतरण के बीज भी बोये जाते होंगे। वैसे ही रश्मिभाई दुकान बंद करने की तैयारी में थे। उस दिन ग्राहकी कुछ ज्यादा तेज थी। रश्मिभाई की भतीजी सिम्मी उनको बुलाने के लिए आ पहुंची थी। चूँकि चाचा को आने में देर हो गयी थी, इस लिए चाची कब से बड़बड़ा रही थी की खाना तैयार था पर चाचा नहीं आये। खाली बैठी सिम्मी ने चाची को कहा, “चाची आप चिंता ना करें। मैं अभी भाग कर जाती हूँ और चाचाजी …